5x0bjT_m3kQ/s484/BBLM%2B3D.png" height="70px" width="200px"/>
function random_imglink(){ var myimages=new Array() myimages[1]="http://www.blogprahari.com/themes/default/imgs/ads/hosting-b22.jpg" myimages[2]="http://www.blogprahari.com/themes/default/imgs/ads/hosting-b22.jpg" var imagelinks=new Array() imagelinks[1]="http://domain.mediaprahari.com/" imagelinks[2]="http://mediaprahari.com/" var ry=Math.floor(Math.random()*myimages.length) if (ry==0) ry=1 document.write('') } random_imglink() Random Advertise by Blogprahari ---->

Check Page Rank of your Web site pages instantly:

This page rank checking tool is powered by Page Rank Checker service


CG Blog


CG Blog

www.hamarivani.com
style="border:none" src="http://www.searchenginegenie.com/widget/seo_widget.php?url=http://ghazalkenam.blogspot.com" alt="Search Engine Promotion Widget" />
www.apnivani.com ...
Global Voices हिन्दी में
रफ़्तार
चिट्ठाजगत

शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

आशिक़ को नसीहत

दिल के दीवारों की, आशिक़ को नसीहत,
इश्क़ के सीमेन्ट से ढ्ह जाये ना छत।

रेत भी गमगीं नदी का हो तो अच्छा,
सुख का दरिया करता है अक्सर बग़ावत।

सब्र का सरिया बिछाना दिल के छत पे,
छड़, हवस की कर न पायेगी हिफ़ाज़त

प्लास्टर विश्वास के रज का लगा हो,
खिड़कियों के हुस्न से टपके शराफ़त।

सारे दरवाज़े,मिजाज़ो से हों नाज़ुक,
कुर्सियों के बेतों से झलके नफ़ासत।

कमरों में ताला सुकूं का ही जड़ा हो,
फ़र्श लिखता हो मदद की ही इबारत।

दोस्ती की धूप हो,आंगन के लब पे,
गली में महफ़ूज़ हो चश्मे-मुहब्बत।

सीढियों की धोखेबाज़ी, बे-फ़लक हो,
दीन के रंगों से खिलती हो इमारत।

मेहनत का हो धुंआ दानी किचन में,
रोटियों की जंग में, टूटे न वहदत।

वहदत--एकता।

शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

तलाशे- नौकरी।

इस भीड़ भरी ट्रेन में कोई नहीं मेरा,
तन्हाई के बिस्तर में तसव्वुर का बसेरा।

रफ़्तार बहुत तेज़ है बैठा भी न जाता,
मजबूरी के चादर में ग़मे-जिस्म लपेटा।

मुझको नहीं मालूम कहां है मेरी मन्ज़िल,
कब ये ख़ौफ़ज़दा रस्ता सख़ावत से हटेगा। ( सख़ावत- दानशीलता)

मै एक नई नौकरी करने चला परदेश,
माज़ी के ग़मों का जहां होगा न बखेड़ा। (माज़ी - बीता समय)

मग़रूर था उस फ़ेक्टरी का दिल जहां था मैं,
सम्मान नये स्थान में महफ़ूज़ रहेगा।

हम नौकरों को झेलना ही पड़ता है ये सब,
मालिक के बराबर कहां ठहराव मिलेगा।

अपनों से विदा ले के चला हूं मैं सफ़र में,
अब हश्र तलक अपनों को ये दिल न दिखेगा।

सच्चाई दिखानी है वहां अपने ज़मीं की,
अब झूठ का दरिया वहां पानी भरेगा।

किस्मत का बदलना मेरे बस में नहीं दानी,
भगवान ही दानी की ख़ता माफ़ करेगा।

शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

मुसाफ़िर

बंद राहों के सफ़र का मैं मुसाफ़िर,
पैरों में बेहोशी, पर उन्मादी है सिर।

तन में ज़ख़्मों का दुशाला इक फ़टा सा,
चप्पलों में ख़ून का दरिया है हाज़िर।

सेहरा है दीनो-ईमां का गले में,
मेरा ही ख़ूं देख दुनिया समझे काफ़िर।

सब्र का झंडा गड़ा था दिल के छत पे ,
लड़ता तूफ़ाने-हवस से कैसे आख़िर।

अब नहीं पढती किताबे-दिल को लैला,
ग़मे-मजनू का बने अब कौन मुख़बिर।

बैठ्के -दिल में रसोई का धुआं है ,
इक मुकदमा आग का, आंगन पे दाइर।

तन के दरवाज़ों को कचरों की अता,
मन की गलियों में नही दिखता मुहर्रिर।

बेवफ़ाई के महल के, सुख भी नाज़ुक,
शौक का सीमेन्ट सदियों से शातिर।

बीवी का दिल, ग़ै्रों के पैसों पे कुर्बां,
बात ये कैसे करूं दुनिया को ज़ाहिर।

उलझनों की बेड़ियां माथे पे दानी,
मुश्किलों का कारवां घर में मुनाज़िर।


अता-देन ,मुनाज़िर- आंखों के सामने। मुख़बिर--ख़बर देने वला।

शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

इश्क़ का मंदिर

ख़ुदगरज़ तेरी मुहब्बत की हवा है,
रोज़ जिसको छत बदलने में मज़ा है।

सैकड़ों मशगूल हैं सजदे में तेरे,
तू जवानी के बियाबां की ख़ुदा है।

मैं पुजारी ,इश्क़ के मंदिर का तेरा,
देवी दर्शन पर मुझे मिल ना सका है।

आंधियों के क़त्ल का ऐलान है अब,
सर, चराग़ों की जमानत ले चुका है।

दिल के भीतर सैकड़ों दीवारें हैं अब,
रिश्तों का बाज़ार पैसों पर टिका है।

है ज़रूरी पैसा जीने के लिये पर,
इश्क़ का गुल्लक भरोसों से भरा है।

तुम भी तडफ़ोगी वफ़ा पाने किसी की,
एक हुस्ने-बेवफ़ा को बद्दुआ है।

सच्चा आशिक़ सब्र के सागर में रहता,
तू किनारों के हवस में मुब्तिला है।

आगे राहे-इश्क़ में बढना तभी ,गर
दानी कुरबानी का दिल में हौसला है।

शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

न्याय की छत

दिल के घर में हर तरफ़ दीवार है,
जो अहम के कीलों से गुलज़ार है।

तौल कर रिश्ते निभाये जाते यहां,
घर के कोने कोने में बाज़ार है।

अब सुकूं की कश्तियां मिलती नहीं,
बस हवस की बाहों में पतवार है।

ख़ून से लबरेज़ है आंगन का मन,
जंगे-सरहद घर में गो साकार है।

थम चुके विश्वास के पखें यहां,
धोखेबाज़ी आंखों का ष्रिंगार है।

ज़ुल्म के तूफ़ानों से कमरा भरा,
सिसकियां ही ख़ुशियों का आधार है।

हंस रहा है लालची बैठका का फ़र्श,
कुर्सियों की सोच में हथियार है।

मुल्क का फ़ानूस गिरने वाला है,
हां सियासत की फ़िज़ा गद्दार है।

सर के बालों की चमक बढने लगी,
पेट की थाली में भ्रष्टाचार है।

न्याय की छत की छड़ें जर्जर हुईं,
चंद सिक्कों पे टिका संसार है।

टूटी हैं दानी मदद की खिड़कियां,
दरे-दिल को आंसुओं से प्यार है।