ख़ुशियों का सूर्य गायब है घर से,
छाये हैं ग़म के बादल उपर से।
रात ख़ुद आज घबराई सी है,
चांदनी भी ख़फ़ा है क़मर से।
दुनिया समझे शराबी मुझे,जब
से मिली आंख़ें तेरी नज़र से।
हार ही जीत की पहली सीढी है,
रुकते हो क्यूं पराजय के डर से।
इस महक को मैं पहचानता हूं,
बेवफ़ा गुज़री होगी इधर से।
रातें कट जाती हैं जैसे तैसे,
डरती हैं मेरी सांसें सहर से।
रोज़ वो किस गली गुल खिलाती,
कुछ पता तो करो रहगुज़र से।
दूर रख दिल पहाड़ों से,बचना
भी कठिन गर गिरोगे शिखर से।
ईद का चांद जब तक दिखे ना
मैं हटूंगा नही दानी दर से।
रविवार, 3 अप्रैल 2011
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अति उत्तम ,अति सुन्दर और ज्ञान वर्धक है आपका ब्लाग
जवाब देंहटाएंबस कमी यही रह गई की आप का ब्लॉग पे मैं पहले क्यों नहीं आया अपने बहुत सार्धक पोस्ट की है इस के लिए अप्प धन्यवाद् के अधिकारी है
और ह़ा आपसे अनुरोध है की कभी हमारे जेसे ब्लागेर को भी अपने मतों और अपने विचारो से अवगत करवाए और आप मेरे ब्लाग के लिए अपना कीमती वक़त निकले
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/