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Global Voices हिन्दी में
रफ़्तार
चिट्ठाजगत

रविवार, 24 अप्रैल 2011

ज़िन्दगी यारो नदी है।

तुमको इज़्ज़त की पड़ी है,
मेरी दुनिया लुट रही है।

बेवफ़ाई की गली भी,
हां ख़ुदा द्वारा बनी है।

इश्क़ नेक़ी का मुसाफ़िर,
हुस्न धोखे की गली है।

हम चराग़ों के सिपाही,
आंधियों से दुश्मनी है।

चाह कर भी रुक न सकते,
ज़िन्दगी यारो नदी है।

क्यूं किनारों पर सड़ें जब,
लहरों की दीवानगी है।

तीरगी के इस सफ़र में,
जुगनुओं से दोस्ती है।

मेरी दरवेशी पे मत हंस,
अब यही मेरी ख़ुदी है।

चांद के जाते ही दानी,
चांदनी बिकने खड़ी है।

रविवार, 3 अप्रैल 2011

गम के बादल

ख़ुशियों का सूर्य गायब है घर से,
छाये हैं ग़म के बादल उपर से।

रात ख़ुद आज घबराई सी है,
चांदनी भी ख़फ़ा है क़मर से।

दुनिया समझे शराबी मुझे,जब
से मिली आंख़ें तेरी नज़र से।

हार ही जीत की पहली सीढी है,
रुकते हो क्यूं पराजय के डर से।

इस महक को मैं पहचानता हूं,
बेवफ़ा गुज़री होगी इधर से।

रातें कट जाती हैं जैसे तैसे,
डरती हैं मेरी सांसें सहर से।

रोज़ वो किस गली गुल खिलाती,
कुछ पता तो करो रहगुज़र से।

दूर रख दिल पहाड़ों से,बचना
भी कठिन गर गिरोगे शिखर से।

ईद का चांद जब तक दिखे ना
मैं हटूंगा नही दानी दर से।