5x0bjT_m3kQ/s484/BBLM%2B3D.png" height="70px" width="200px"/>
function random_imglink(){ var myimages=new Array() myimages[1]="http://www.blogprahari.com/themes/default/imgs/ads/hosting-b22.jpg" myimages[2]="http://www.blogprahari.com/themes/default/imgs/ads/hosting-b22.jpg" var imagelinks=new Array() imagelinks[1]="http://domain.mediaprahari.com/" imagelinks[2]="http://mediaprahari.com/" var ry=Math.floor(Math.random()*myimages.length) if (ry==0) ry=1 document.write('') } random_imglink() Random Advertise by Blogprahari ---->

Check Page Rank of your Web site pages instantly:

This page rank checking tool is powered by Page Rank Checker service


CG Blog


CG Blog

www.hamarivani.com
style="border:none" src="http://www.searchenginegenie.com/widget/seo_widget.php?url=http://ghazalkenam.blogspot.com" alt="Search Engine Promotion Widget" />
www.apnivani.com ...
Global Voices हिन्दी में
रफ़्तार
चिट्ठाजगत

शनिवार, 30 जुलाई 2011

मौत की उम्मीद

मरने की उम्मीद में बस जी रहा हूं,
अपनी सांसों का कफ़न खुद सी रहा हूं।

तेरी आंखों के पियाले देखे जब से,
मैं शराबी तो नहीं पर पी रहा हूं।

जनता के आइनों से मैं ख़ौफ़ खाता ,
मैं सियासी चेहरों का पानी रहा हूं।

तुम तवायफ़ की गली की आंधियां, मैं,
बे-मुरव्वत शौक की बस्ती रहा हूं।

क्या पता इंसानियत का दर्द मुझको,
सोच से ता-उम्र सरकारी रहा हूं।

काम हो तो मैं गधे को बाप कहता,
दिल से इक चालाक व्यापारी रहा हूं।

इश्क़ में तेरे ,हुआ बरबाद ये दिल,
हुस्न के मंचों की कठपुतली रहा हूं।

जग, पुजारी है किनारों की हवस का,
सब्र के दरिया की मैं कश्ती रहा हूं।

मत करो दानी हवाओं की ग़ुलामी,
मैं चरागों के लिये ख़ब्ती रहा हूं।

शनिवार, 23 जुलाई 2011

रात की तंग गलियां

रात की तंग गलियों में सपने मेरे गुम रहे,
उनकी यादों के बेदर्द तूफ़ां भी मद्ध्म रहे।

नींद आती नहीं रात भर जागता रहता हूं,
मेरी तन्हाइयों के शराफ़त भी गुमसुम रहे।

ज़ख्मों का बोझ लेकर खड़ा हूं दरे-हुस्न पर,
दर्द ,गम ,आंसू ,रुसवाई ही मेरे मरहम रहे।

वस्ल का चांद परदेश में बैठके ले रहा,
इश्क़ की फ़ाइलों में विरह के तबस्सुम रहे।

प्यार की आग की लपटों से कौन बच पाया है,
दिल के मैदानों से दूर बारिश के मौसम रहे।

चांदनी मुझसे नाराज़ थी जब तलक दोस्तों,
तब तलक मेरे घर जुगनुओं के तरन्नुम रहे।

ईदी का फ़र्ज़ हुस्न वाले निभाते नहीं,
इसलिये आश्क़ी की गिरह में मुहर्रम रहे।

कर्ज़ की फ़स्लों से फ़ायदा ओ सुकूं कब मिला,
प्यार के खेतों पर बैंकों के खौफ़-मातम रहे।

गोया हर दौर में सैकड़ो लैला मजनू हुवे,
दुनिया वाले भी हर दौर में दानी ज़ालिम रहे।

शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

चांदनी का दरवाज़ा।

चांदनी का बंद क्यूं दरवाज़ा है,
चांद आखिर किस वतन का राजा है।

अपनी ज़ुल्फ़ों को न लहराया करो,
बादलों का कारवां धबराता है।

नेकी की बाहों में रातें कटती हैं ,
सुबह फिर दर्दे बदी छा जाता है।

मोल पानी का न जाने शहरे हुस्न,
मेरे दिल का गांव अब भी प्यासा है।

घर के अंदर रिश्तों का बाज़ार है,
पैसा ही मां बाप जीजा साला है।

फ़र्ज़ की पगडंडियां टेढी हुईं,
धोखे का दालान सीधा साधा है।

क्यूं प्रतीक्षा की नदी में डूबूं मैं,
जब किनारों का अभी का वादा है।

मैं पुजारी ,तू ख़ुदा-ए- हुस्न है,
ऊंचा किसका इस जहां में दर्ज़ा है।

पी रहां हूं सब्र का दानी शराब,
अब हवस का दरिया बिल्कुल तन्हा है।

शनिवार, 9 जुलाई 2011

मुहब्बत की कहानी

मुहब्बत तेरी मेरी कहानी के सिवा क्या है,
विरह के धूप में तपती जवानी के सिवा क्या है।

तुम्हारी दीद की उम्मीद में बैठा हूं तेरे दर,
तुम्हारे झूठे वादों की गुलामी के सिवा क्या है।

समन्दर ने किनारों की ज़मानत बेवजह ली,ये
इबादत-ए-बला आसमानी के सिवा क्या है।

तेरी ज़ुल्फ़ों के गुलशन में गुले-दिल सूर्ख हो जाता,
तेरे मन में सितम की बाग़वानी के सिवा क्या है।

पतंगे-दिल को कोई थामने वाला मिले ना तो,
थकी हारी हवाओं की रवानी के सिवा क्या है।

न इतराओ ज़मीने ज़िन्दगी की इस बुलन्दी पर,
हक़ीक़त में तेरी फ़स्लें ,लगानी के सिवा क्या है।

शिकम का तर्क देकर बैठा है परदेश में हमदम,
विदेशों में हवस की पासबानी के सिवा क्या है।

ग़रीबों के सिसकते आंसुओं का मोल दानी अब,
अमीरों के लिय आंखों के पानी के सिवा क्याहै।

शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

सुख का दरवाज़ा

सुख का दरवाज़ा खुला है,
ग़म प्रतिक्षा कर रहा है।

सूर्ख हैं फूलों के चेहरे,
रंग काटों का हरा है।

रात की बाहों मेंअब तक,
दिन का सूरज सो रहा है।

जीतना है झूठ को गर,
सच से रिश्ता क्यूं रखा है।

इश्क़ के जंगल में फिर इक,
दिल का राही फंस चुका है।

बन्दगी उनकी हवस की,
सब्र क्यूं मेरा ख़ुदा है।

जब सियासत बहरों की ,क्यूं
तोपों का माथा चढा है।

बच्चों की ख़ुशियों के खातिर,
बाप को मरना पड़ा है।

इश्क़ के सीने पे अब भी,
हुस्न का जूता रखा है।

मुल्क में पैसा तो है पर,
हिर्स का ताला लगा है। ( हिर्स-- लालच)

ज़ुल्म के दरिया से दानी,
दीन का साहिल बड़ा है।