हर जंग का मिज़ान है हिम्मत ओ हौसला,
पर इश्क़ के मकान में ताक़त का काम क्या।
आवार घूमता है विरह की गली में चांद,
फिर बादलों का चांदनी पर जादू चल गया।
मंज़ूर है चरागे-जिगर को शरारे ग़म,
महफ़िल-ए-हुस्न जलवा दिखाये तो मरहबा।
पतझड़ भरे खेतों में कल आयेगी बहार,
हर ज़िन्दगी के साथ है सुख दुख का सिलसिला।
हमको मिला ग़रीबी का दानव तमाम उम्र,
गोया अमीरों की ही इबादत सुने ख़ुदा।
मां गांव में अकेले ही मर ख़फ़ गई मगर,
मैं बज़्मे-शह्र से कभी भी ना निकल सका।
जलते रहा वफ़ा के शरारों में मेरा दिल,
मेरे जनाज़े में भी न ,पर आई बेवफ़ा।
वो नीमकश निगाहें वो दिलकश अदायें हाय,
उस बेरहम को कैसे दूं मर के भी बद्दुआ।
मझधारे-शौक़ को हरा कर दानी आया है,
पर सब्र के किनारों को मुश्किल है जीतना।
शुक्रवार, 19 अगस्त 2011
शनिवार, 6 अगस्त 2011
विरह की आग।
मुझसे सावन की घटा ,ये कह रही है,
क्यूं विरह की आग तेरे दर खड़ी है।
ऐसे मौसम में ख़फ़ा क्यूं तुझसे साजन ,
तेरे ही श्रृंगार में शायद कमी है।
कुछ अदा-ए-हुस्न का परचम तो फ़हरा,
तुझको यौवन की इनायत तो मिली है।
भीख मांगेगा रहम की,तुझसे वो, तू
हुस्न की जंज़ीर ढीली क्यूं रखी है।
बांध कर क्यूं रखते हो ज़ुल्फ़ों को अपनी,
इसके साये में हया भी बोलती है।
नथनी ,बिछिया , पैरों में माहुर कहां हैं,
सब्र की बुनियाद इनसे ही ढही है।
नीमकश नज़रों से बर्छी तो चलाओ,
सैकड़ों कुरबानी इसने ही तो ली है।
चूड़ियों को हौले से खनका तो दे , फिर
देखें कितनी पाक साजन की ख़ुदी है।
फिर सुना, झन्कार अपने पायलों की,
साधुओं की भी इन्हीं से दुश्मनी है।
सुर्ख साड़ी की ज़मानत क्यूं न लेती,
ये मुहब्बत की अदालत की सखी है।
तेरा साजन दौड़ कर आयेगा दानी,
वो कोई ईश्वर नहीं इक आदमी है।
क्यूं विरह की आग तेरे दर खड़ी है।
ऐसे मौसम में ख़फ़ा क्यूं तुझसे साजन ,
तेरे ही श्रृंगार में शायद कमी है।
कुछ अदा-ए-हुस्न का परचम तो फ़हरा,
तुझको यौवन की इनायत तो मिली है।
भीख मांगेगा रहम की,तुझसे वो, तू
हुस्न की जंज़ीर ढीली क्यूं रखी है।
बांध कर क्यूं रखते हो ज़ुल्फ़ों को अपनी,
इसके साये में हया भी बोलती है।
नथनी ,बिछिया , पैरों में माहुर कहां हैं,
सब्र की बुनियाद इनसे ही ढही है।
नीमकश नज़रों से बर्छी तो चलाओ,
सैकड़ों कुरबानी इसने ही तो ली है।
चूड़ियों को हौले से खनका तो दे , फिर
देखें कितनी पाक साजन की ख़ुदी है।
फिर सुना, झन्कार अपने पायलों की,
साधुओं की भी इन्हीं से दुश्मनी है।
सुर्ख साड़ी की ज़मानत क्यूं न लेती,
ये मुहब्बत की अदालत की सखी है।
तेरा साजन दौड़ कर आयेगा दानी,
वो कोई ईश्वर नहीं इक आदमी है।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)