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Global Voices हिन्दी में
रफ़्तार
चिट्ठाजगत

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

नया हूं अभी

मैं तेरे शह्र में बिलकुल नया नया हूं अभी,
तेरे वादों के हवालात में बंधा हूं अभी।

चराग़ों के लिये मंज़ूर है मुझे मरना,
मुकद्दर आंधियों के तेग पर रखा हूं अभी।

घिरी है बदज़नी से , हुस्न की गली गोया,
लुटाने इश्क़ के इमान को चला हूं अभी।

बहुत डरता हूं उजालों की बेख़ुदी से मैं,
तेरी यादों के अंधेरों में जा छिपा हूं अभी।

ख़ुदा के गांव से आया हुआ मुसाफ़िर हूं,
तुम्हारे हुस्न के चौपाल पर फ़िदा हूं अभी।

मुहब्बत में वफ़ा के बदले धोखा ही पाया,
मगर फिर भी वफ़ा का ज़ुल्म कर रहा हूं अभी।

समंदर से मेरा रिश्ता पुराना है दानी,
सितमगर साहिलों से डरने लगा हूं अभी।

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

क़ातिल लापता है

मौत से ये दिल रज़ा है,
और क़ातिल लापता है।

वो समंदर ,मैं किनारा,
उम्र भर का फ़ासला है।

मैं चरागों का मुहाफ़िज़,
वो हवाओं की ख़ुदा है।

सब्र की जंज़ीरें मुझको,
खुद हवस में मुब्तिला है।

सांसें कब की थम चुकी हैं,
ज़ख्मे दिल फिर भी हरा है।

बेवफ़ाई की ज़मीं पर,
शजरे दिल अब भी खड़ा है।

चैन भी वो ले गई है,
जिसको दिल मंने दिया है।

बोझ सांसों का उठाये,
इक ज़माना हो गया है।

प्यार की सरहद पे दानी,
इश्क़ ही क्यूं हारता है।