मैं तेरे शह्र में बिलकुल नया नया हूं अभी,
तेरे वादों के हवालात में बंधा हूं अभी।
चराग़ों के लिये मंज़ूर है मुझे मरना,
मुकद्दर आंधियों के तेग पर रखा हूं अभी।
घिरी है बदज़नी से , हुस्न की गली गोया,
लुटाने इश्क़ के इमान को चला हूं अभी।
बहुत डरता हूं उजालों की बेख़ुदी से मैं,
तेरी यादों के अंधेरों में जा छिपा हूं अभी।
ख़ुदा के गांव से आया हुआ मुसाफ़िर हूं,
तुम्हारे हुस्न के चौपाल पर फ़िदा हूं अभी।
मुहब्बत में वफ़ा के बदले धोखा ही पाया,
मगर फिर भी वफ़ा का ज़ुल्म कर रहा हूं अभी।
समंदर से मेरा रिश्ता पुराना है दानी,
सितमगर साहिलों से डरने लगा हूं अभी।
गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012
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धन्यवाद रूपचंद शास्त्री मयंक जी।
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