तू मेरे सूर्ख गुलशन को हरा कर दे ,
ज़मीं से आसमां का फ़ासला कर दे।
हवाओं के सितम से कौन डरता है ,
मेरे सर पे चरागों की ज़िया कर दे ।
या बचपन की मुहब्बत का सिला दे कुछ,
या इस दिल के फ़लक को कुछ बड़ा कर दे।
तसव्वुर में न आने का तू वादा कर ,
मेरी तनहाई के हक़ में दुआ कर दे।
पतंगे की जवानी पे रहम खा कुछ ,
तपिश को अपने मद्धम ज़रा कर दे ।
हराना है मुझे भी अब सिकन्दर को ,
तू पौरष सी शराफ़त कुछ अता कर दे।
मुझे मंज़ूर है ज़ुल्मो सितम तेरा ,
मुझे जो भी दे बस जलवा दिखा कर दे ।
तेरे बिन कौन जीना चाहता है अब ,
मेरी सांसों की थमने की दवा कर दे ।
शहादत पे सियासत हो वतन मे तो ,
शहीदों के लहद को गुमशुदा कर दे।
यहीं जीना यहीं मरना है दोनों को ,
यहीं तामीर काशी करबला कर दे।
भटकना गलियों में मुझको नहीं आता,
दिले-आशिक़ को दानी बावरा कर दे।
अता- देना ,लहद-क़ब्र, तसव्वुर-कल्पना ,फ़लक-गगन।, ज़िया-रौशनी
रविवार, 6 फ़रवरी 2011
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bahut achcha likha hai.
जवाब देंहटाएंयहीं जीना यहीं मरना है दोनों को ,
जवाब देंहटाएंयहीं तामीर काशी करबला कर दे।
बहुत सार्थक सोच..बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..हरेक शेर लाज़वाब
achchhe sher....umda gazal.
जवाब देंहटाएंयहीं जीना यहीं मरना है दोनों को ,
जवाब देंहटाएंयहीं तामीर काशी करबला कर दे।
-क्या बात है, बहुत खूब!!
शानदार है,बधाई
जवाब देंहटाएंआदरणीया म्रिदुला प्रधान , आदरणीय कैलाश जी , सुरेन्द्र जी ,आदरणीय समीर जी व अजय जी का बहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंशहादत पे सियासत हो वतन मे तो ,
जवाब देंहटाएंशहीदों के लहद को गुमशुदा कर दे।
बेहतरीन प्रस्तुति।
तसव्वुर में न आने का तू वादा कर ,
जवाब देंहटाएंमेरी तनहाई के हक़ में दुआ कर दे।
तपिश को अपनी तू मद्धम ज़रा कर दे ।
तेरे बिन कौन जीना चाहता है अब ,
मेरी सांसों की थमने की दवा कर दे ।
भटकना गलियों में मुझको नहीं आता,
दिले-आशिक़ को दानी बावरा कर दे।
संजय भाई साब, कई दिनों बाद पढ़ने का मौका मिला आपको| बेहद खूबसूरत ग़ज़ल| दिल खुश हो गया|
पूरी गज़ल ही बहुत खूब कही है ..
जवाब देंहटाएंअतुल भाई ,नवीन भाई व आदरणीया संगीता स्वरूप ( गीत ) जी को हौसला अफ़ज़ाई के लिये बहुत बहुत धन्यवाद।
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