तुमको इज़्ज़त की पड़ी है,
मेरी दुनिया लुट रही है।
बेवफ़ाई की गली भी,
हां ख़ुदा द्वारा बनी है।
इश्क़ नेक़ी का मुसाफ़िर,
हुस्न धोखे की गली है।
हम चराग़ों के सिपाही,
आंधियों से दुश्मनी है।
चाह कर भी रुक न सकते,
ज़िन्दगी यारो नदी है।
क्यूं किनारों पर सड़ें जब,
लहरों की दीवानगी है।
तीरगी के इस सफ़र में,
जुगनुओं से दोस्ती है।
मेरी दरवेशी पे मत हंस,
अब यही मेरी ख़ुदी है।
चांद के जाते ही दानी,
चांदनी बिकने खड़ी है।
रविवार, 24 अप्रैल 2011
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तीरगी के इस सफ़र में,
जवाब देंहटाएंजुगनुओं से दोस्ती है।
बहुत सुंदर
बहुत बहुत धन्यवाद महेन्द्र श्रीवास्तव जी।
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