मुझसे तन्हाई मेरी ये पूछती है,
बेवफ़ाओं से तेरी क्यूं दोस्ती है।
चल पड़ा हूं मुहब्बत के सफ़र में,
पैरों पर छाले रगों में बेख़ुदी है।
पानी के व्यापार में पैसा बहुत है,
अब तराजू की गिरह में हर नदी है।
एक तारा टूटा है आसमां पर,
शौक़ की धरती सुकूं से सो रही है।
बिल्डरों के द्वारा संवरेगा नगर अब,
सुन ये, पेड़ों के मुहल्ले में ग़मी है।
अब अंधेरों का मुसाफ़िर चांद भी है,
चांदनी के ज़ुल्फ़ों की आवारगी है।
अब खिलौनों वास्ते बच्चा न रोता,
टीवी के दम से जवानी चढ गई है।
दिल की कश्ती को किनारों ने डुबाया,
इसलिये मंझधार को से मिलने चली है।
मत लगाना हुस्न पर इल्ज़ाम दानी,
ऐसे केसों में गवाहों की कमी है।
सोमवार, 30 मई 2011
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पानी के व्यापार में पैसा बहुत है,
जवाब देंहटाएंअब तराजू की गिरह में हर नदी है।
खुबसूरत शेर अच्छा लगा गज़ल भी कम नहीं है, बधाई ....
तन्हाई के माहौल को उकेरती शानदार रचना।
जवाब देंहटाएं---------
विश्व तम्बाकू निषेध दिवस।
सहृदय और लगनशीन ब्लॉगर प्रकाश मनु।
Many many thanks to Sunil ji and zakir ji
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