मेरी तेरी जब से कुछ पहचान है,
मुश्किलों में तब से मेरी जान है।
प्यार का इज़हार करना चाहूं पर,
डर का चाबुक सांसों का दरबान है।
इश्क़ में दरवेशी का कासा धरे,
बेसबब चलने का वरदान है।
जब से तेरै ज़ुल्फ़ों की खम देखी है,
तब से सांसत मे मेरा ईमान है।
मत झुकाओ नीमकश आखों को और,
और कुछ दिन जीने का अरमान है।
ज़िन्दगी भर ईद की ईदी तुझे,
मेरे हक़ में उम्र भर रमजान है।
सब्र की पगडदियां मेरे लिये,
तू हवस के खेल की मैदान है।
मेरे दिल के कमरे अक्सर रोते हैं,
तू वफ़ा की छत से क्यूं अन्जान है।
तेरे बिन जीना सज़ा से कम नहीं,
मरना भी दानी कहां आसान है।
शुक्रवार, 24 जून 2011
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बशुत सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंशुक्रिया पटाली जी।
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