तमहीद क्या लिखूं मेरे यार की,
वो इक दवा है दर्दे-बीमार की।
तेरी अदायें माशा अल्ला सनम,
तेरी बलायें मैंने स्वीकार की।
दरवेशी मैंने तुमसे ही पाई है,
मेरी जवानी तुमने दुशवार की।
दिल ये चराग़ों सा जले,मैंने जब
देखी, हवा-ए-हुस्न सरकार की।
लहरों से मेरा रिश्ता मजबूत है,
साहिल ने बदगुमानी हर बार की।
ना पाया हुस्न की नदी में सुकूं,
कश्ती की सांसें खुद ही मंझधार की।
मासूम मेरे कल्ब को देख कर,
फिर उसने तेज़, धारे-तलवार की।
ग़ुरबत में रहते थे सुकूं से, खड़ी
ज़र के लिये तुम्ही ने दीवार की।
परदेश में ज़माने से बैठा हूं,
है फ़िक्र दानी अपने दस्तार की।
शनिवार, 8 जनवरी 2011
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