मेरे दिल की खिड़कियां टूटी है हमदम,
फिर भी तेरे हुस्न का तूफ़ां है बरहम। ( बरहम-- अप्रसन्न)
आंसुओं से मैं वफ़ा के गीत लिखता,
बे-वफ़ाई तेरी आंखों की तबस्सुम।
मैं शराबी तो नहीं लेकिन करूं क्या,
दिल बहकता,देख तेरी ज़ुल्फ़ों का खम।
तुम हवस के छाते में गो गुल खिलाती,
सब्र से भीगा है मेरे दिल का मौसम।
साथ तेरे स्वर्ग की ख़्वाहिश थी मेरी,
अब ख़ुदा से मांगता हूं जहन्नुम।
हिज्र की लहरों से मेरी दोस्ती है,
वस्ल के साहिल का तू ना बरपा मातम।
मैं चराग़ों के मुहल्ले का सिपाही,
आंधियों से मुझको लड़ना है मुजस्सम। ( मुजस्सम--जिस्म सहित , आमने -सामने)
मेरे दिल में हौसलों की सीढियां हैं,
पर सफ़लता, भ्रष्ट लोगों के है शरणम।
मेरी ख़ुशियों का गला यूं घोटा दानी,
ईद के दिन भी मनाता हूं मुहर्रम।
शनिवार, 1 जनवरी 2011
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें