आशिक़ी का कोई तो पैमाना होगा,
बेबसी के गीत कब तक गाना होगा।
चादनी की बदज़नी स्वीकार कर ले,
चंद को घर छोड़ या फिर जाना होगा।
सर झुका कर हुस्न के नखरे जो झेले,
दौरे-फ़रदा में वही मरदाना होगा।
दिल समंदर के नशा से निकले बाहर,
हुस्न की कश्ती में गर मैखाना होगा।
मैं ग़ुनाहे -इश्क़ कर तो लूं सनम,गर
दा्यरे- तफ़्तीश तेरा थाना होगा।
आये मुल्के हुस्न में आफ़त का तूफ़ां,
गर सिपाही इश्क़ का बेगाना होगा।
तेरी आंखों में शरारे जब दिखेंगी,
मरने को तैयार ये परवाना होगा।
फ़ंस चुका है जो हवस के जाल में ,वो
सब्र की शमशीर से अन्जाना होगा।
गर मदद की आग दानी लेनी है तो
तो गुज़रिश का धुआं फ़ैलाना होगा।
बुधवार, 26 अक्तूबर 2011
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बहुत कमाल की गज़ल है ...लाजवाब शेर हैं सभी ... अगल अंजाद लिए ...
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