तुम मेरे दर्द की दवा भी हो,
तुम मेरे ज़ख़्मों पर फ़िदा भी हो।
इश्क़ का रोग ठीक होता नहीं,
ये दिले नादां को पता भी हो।
शह्रों की बदज़नी भी हो हासिल,
गांवों की बेख़ुदी अता भी हो।
पेट परदेश में भरे तो ठीक,
मुल्क में कब्र इक खुदा भी हो।
महलों की खुश्बू से न हो परहेज़,
साथ फ़ुटपाथ की हवा भी हो।
उस समन्दर में डूबना चाहूं,
जो किनारों को चाहता भी हो।
मैं ग़रीबी की आन रख लूंगा,
पर अमीरों की बद्दुआ भी हो।
हारे उन लोगों से बनाऊं फ़ौज़,
जिनके सीनों में हौसला भी हो।
आशिक़ी का ग़ुनाह कर लूं साथ
दानी,मां बाप की दुआ भी हो।
सोमवार, 7 नवंबर 2011
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खुबसूरत ग़ज़ल , मुबारक हो
जवाब देंहटाएंबहुत खूब खूबसूरत शेरों से सजी सुंदर गजल....
जवाब देंहटाएंहारे उन लोगों से बनाऊं फ़ौज़,
जवाब देंहटाएंजिनके सीनों में हौसला भी हो।
उम्दा खयाल !
सुन्दर गज़ल .. बहुत खूब
जवाब देंहटाएंkhoobsurat.......bahut pasand aayee.
जवाब देंहटाएंपेट परदेश में भरे तो ठीक,
जवाब देंहटाएंमुल्क में कब्र इक खुदा भी हो...
बहुत खूब संजय जी .... क्या लाजवाब शेर है ये ... हकीकत है इस पूरी गज़ल में ... सुभान अल्ला ...
सुनील जी और पल्लवी जी को शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंवाणी जी और वर्मा जी को धन्यवाद्।
जवाब देंहटाएंम्रिदुला जी और नासवा जी को धन्यवाद्।
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा!!
जवाब देंहटाएंमहलों की खुश्बू से न हो परहेज़,
साथ फ़ुटपाथ की हवा भी हो।
-वाह!!
धन्यवाद सर।
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