वादों की कश्ती पर सवार है दिल,
हिज्र के ज़ुल्मों का शिकार है दिल्।
तुमसे मिल के करार पाऊंगा,
बस यही सोच बेकरार है दिल्।
तुमको देकर किनारों की खुशियां,
एक समंदर सा बेहिसार है दिल्।
तू थी तो बिन पिये नशा सा था,
तू गई जब से बेखुमार है दिल्।
तेरे खातिर बना के ताजमहल,
एक दरवेश का मज़ार है दिल्।
तू हवस के सफ़र की एक राही,
मंज़िले सब्र का ग़ुबार है दिल्।
तेरी ज़ुल्फ़ों के सर्द साये में,
एक भड़कता हुआ शरार है दिल्।
बेवफ़ाई की लह्रें भी मंज़ूर,
गो वफ़ा की तटों का यार है दिल्।
आज कल यूं ही दानी हंसता है,
वरना सदियों से अश्कबार है दिल
गुरुवार, 12 जनवरी 2012
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जवाब देंहटाएंBahut khoobsoorat gazal sir..
जवाब देंहटाएंkabhi waqt mile to mere blog par bhi aaiyega..
ummeed karta hun ki apko pasand aayega.. :)
palchhin-aditya.blogspot.com
धन्यवाद आदित्य ज़, आपका ब्लाग ज़रूर देखना चाहूंगा।
जवाब देंहटाएंअच्छे शेरों से सजी खूबसूरत प्रस्तुति.... समय मिले आपको तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://aapki-pasand.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंhttp://mhare-anubhav.blogspot.com/
Thanks Pallavi ji for the compliment,I shall definitly visit to your blog.
जवाब देंहटाएंSarkari Exam
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