दिल के घर में हर तरफ़ दीवार है,
जो अहम के कीलों से गुलज़ार है।
तौल कर रिश्ते निभाये जाते यहां,
घर के कोने कोने में बाज़ार है।
अब सुकूं की कश्तियां मिलती नहीं,
बस हवस की बाहों में पतवार है।
ख़ून से लबरेज़ है आंगन का मन,
जंगे-सरहद घर में गो साकार है।
थम चुके विश्वास के पखें यहां,
धोखेबाज़ी आंखों का ष्रिंगार है।
ज़ुल्म के तूफ़ानों से कमरा भरा,
सिसकियां ही ख़ुशियों का आधार है।
हंस रहा है लालची बैठका का फ़र्श,
कुर्सियों की सोच में हथियार है।
मुल्क का फ़ानूस गिरने वाला है,
हां सियासत की फ़िज़ा गद्दार है।
सर के बालों की चमक बढने लगी,
पेट की थाली में भ्रष्टाचार है।
न्याय की छत की छड़ें जर्जर हुईं,
चंद सिक्कों पे टिका संसार है।
टूटी हैं दानी मदद की खिड़कियां,
दरे-दिल को आंसुओं से प्यार है।
शनिवार, 2 अक्तूबर 2010
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आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (4/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
दिल के घर में हर तरफ़ दीवार है,
जवाब देंहटाएंजो अहम के कीलों से गुलज़ार है।
तौल कर रिश्ते निभाये जाते यहां,
घर के कोने कोने में बाज़ार है...
रिश्तों की एक हकीकत ये भी है ...
धोखेबाजी आंसुओं का श्रृंगार है ...
यथार्थ बयां कर रही है कविता हर एक शब्द से ...
आभार ..!
सर के बालों की चमक बढने लगी,
जवाब देंहटाएंपेट की थाली में भ्रष्टाचार है।
न्याय की छत की छड़ें जर्जर हुईं,
चंद सिक्कों पे टिका संसार है।
बहुत सटीक बात कही है ...सुन्दर भाव पूर्ण गज़ल
क्या कहे जनाब, ग़ालिब कह गए है,
जवाब देंहटाएंख्वाहिश भी तो दिल की हज़ार है ...
सभी उनको पूरी करने में जुटे है, दूरसों की फिक्र करने के लिए कहा वक़्त है ... ?
लिखते रहिये ...
सटीक भावो से ओत-प्रोत गज़ल. बहुत खूब.
जवाब देंहटाएंवन्दना जी , संगीता स्वरूप जी , अनामिका जी , संजय जी , मजाल जी व वाणी गीत के मुखिया को उनकी टिप्पणियों के लिये दिल से धन्यवाद देता हूं। गाहे-ब-गाहे यूं ही ब्लाग में आप सबका दीदार हो तो मैं अपने आप को ख़ुसनसीब समझूंगा।
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