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Global Voices हिन्दी में
रफ़्तार
चिट्ठाजगत

शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

आशिक़ को नसीहत

दिल के दीवारों की, आशिक़ को नसीहत,
इश्क़ के सीमेन्ट से ढ्ह जाये ना छत।

रेत भी गमगीं नदी का हो तो अच्छा,
सुख का दरिया करता है अक्सर बग़ावत।

सब्र का सरिया बिछाना दिल के छत पे,
छड़, हवस की कर न पायेगी हिफ़ाज़त

प्लास्टर विश्वास के रज का लगा हो,
खिड़कियों के हुस्न से टपके शराफ़त।

सारे दरवाज़े,मिजाज़ो से हों नाज़ुक,
कुर्सियों के बेतों से झलके नफ़ासत।

कमरों में ताला सुकूं का ही जड़ा हो,
फ़र्श लिखता हो मदद की ही इबारत।

दोस्ती की धूप हो,आंगन के लब पे,
गली में महफ़ूज़ हो चश्मे-मुहब्बत।

सीढियों की धोखेबाज़ी, बे-फ़लक हो,
दीन के रंगों से खिलती हो इमारत।

मेहनत का हो धुंआ दानी किचन में,
रोटियों की जंग में, टूटे न वहदत।

वहदत--एकता।

4 टिप्‍पणियां:

  1. ग़ज़ल के महल बहुत मज़बूत बनाये है आपने,
    बधाई के पात्र है.
    vijay kr verma

    जवाब देंहटाएं
  2. वन्दना जी,विजय वर्मा जी, अनुपमा जी और आदरणीया संगीता स्वरूप ( गीत) जी के हाथों को शुक्रिया के गुलदस्ते व माथ पर आभार का चंदन।

    जवाब देंहटाएं