शौक के बादल घने हैं
दिल के ज़र्रे अनमने हैं।
दीन का तालाब उथला
ज़ुल्म के दरिया चढ़े हैं।
अब मुहब्बत की गली में
घर,हवस के बन रहे हैं।
मुल्क ख़तरों से घिरा है
क़ौमी छाते तन चुके हैं।
बेवफ़ाई खेल उनका
हम वफ़ा के झुनझुने हैं।
ख़ौफ़ बारिश का किसे हो
शहर वाले बेवड़े हैं।
चार बातें क्या की उनसे
लोग क्या क्या सोचते हैं।
हम ग़रीबों की नदी हैं
वे अमीरों के घड़े हैं।
लहरों पे सुख की ज़ीनत
ग़म किनारों पे खड़े हैं।
रोल जग में" दानी" का क्या
वंश का रथ खींचते हैं।
बुधवार, 24 नवंबर 2010
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"ham gareebon ki nadi hain
जवाब देंहटाएंwo ameeron ke ghade hain"
chhote bahar ki achchhi gazal!
शहर वाले बेवड़े हैं।
जवाब देंहटाएंओहोहोहो वाह संजय भाई, ये मिसरा तो अपुन को बोले तो खूप चांगला लगा| 'ए' को काफिया बनाना इस रचना की खूबी लगी|