मेरे क़ातिल का मुझे कोई पता दो , या उसे मेरी तरफ़ से दुआ दो।
मैं चराग़ों की हिफ़ाज़त कर रहा हूं ,बात ये सरकश हवाओं को बता दो।
बेवफ़ा कह के घटाओ मत मेरा कद, है वफ़ा की चाह तो ख़ुद भी वफ़ा दो।
छोड़ कर जाने के पहले ऐ सितमगर,इक अदा सच्ची मुहब्बत की दिखा दो।
जीते जी गर दूरी ज़ायज थी जहां में, कांधा तो मेरे जनाज़े को लगा दो।
ये किनारे बेरहम हैं बदगुमां हैं , कश्तियों, मंझधार को अपनी बना लो।
चांदनी से चांद की इज़्ज़त है जग मे , रौशनी दो या अंधेरों की सज़ा दो।
ज़िन्दगी कुर्बान है कदमों मे तेरे , ऐ ख़ुदा मरने का मुझको हौसला दो।
प्यार में दरवेशी का आलम है दानी, मिल सको ना तो तसव्वुर की रज़ा दो।
शुक्रवार, 2 जुलाई 2010
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बढ़िया रचना!
जवाब देंहटाएंखूबसूरत गज़ल ....
जवाब देंहटाएंकमेंट्स की सेट्टिंग से वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें...टिप्पणीकर्ता को आसानी रहेगी ..
आदरणीय समीर लाल जी,सगीता स्वरूप जी व राजीव जी को बहुत बहुत धन्यवाद ,हौसला अफ़्ज़ाई के लिये व मार्गदर्शन के लिये।
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