उलझनों में मुब्तिला है ज़िन्दगी ,मुश्किलों का सिलसिला है ज़िन्दगी।
बीच सागर में ख़ुशी पाता हूं मैं , साहिले ग़म से जुदा है ज़िन्दगी ।
फ़ांसी फिर मक़्तूल को दे दी गई ,क़ातिलों का फ़लसफ़ा है ज़िन्दगी।
किसी को तरसाती है ता-ज़िन्दगी,किसी के खातिर ख़ुदा है ज़िन्दगी।
मैं ग़ुलामी हुस्न की क्यूं ना करूं, चाकरी की इक अदा है ज़िन्दगी ।
इक किनारे पे ख़ुशी दूजे पे ग़म ,दो क़दम का फ़ासला है ज़िन्दगी।
मैं हताशा के भंवर में फंस चुका, मेरी सांसों से ख़फ़ा है ज़िन्दगी।
बे-समय भी फ़ूट जाती है कभी ,पानी का इक बुलबुला है ज़िन्दगी।
वादा करके तुम गई हो जब से दूर, तेरी यादों की क़बा है ज़िन्दगी ।
मैं चराग़ो के सफ़र के साथ हूं , बे-रहम दानी हवा है ज़िन्दगी।
सोमवार, 12 जुलाई 2010
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खुदा खैर करे। मगर रचना अच्छी है। शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना, मगर आप जो कॉमा लगाके इकसार लिखते चले जाते हैं - ये पढ़ने में थोड़ा अटपटा लगता है।
जवाब देंहटाएंख़ैर - अच्छी रचना है तो ये भी सहन कर लेंगे।
शायद आप स्टाइल बदल दें आगे…
:)
हौसला अफ़ज़ाई के लिये निर्मला कपिला जी व हिमान्शू जी को धन्यवाद।मोहन जी आपकी तकलीफ़ समझ में आती है।वास्तव में कामाके बाद अगली लाईन प्रारभ होती है। पेज लंबा न हो जाये इसलिये ऐसा फ़ारमेट उपयोग कर रहा हूं। आगे बदल कर देखूंगा।
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