जबसे तुमको देखा है ,मरने की बस इच्छा है।
इक नदी बौराई तू , शांत मेरा दरिया है।
तेरी यादें ही सनम ,अब तो मेरी दुनिया है।
साहिलों से डरता हुं , लहरों से अब रिश्ता है।
हमको जब माना ख़ुदा ,हमसे ही क्यूं पर्दा है।
धक्का दे कर अपनों को,आगे हमको बढना है।
दूर जबसे तू गई , बज़्म मेरा तन्हा है।
चोरी मेरी भी अदा , बस तलाशे मौक़ा है ।
मैं पतंगा तो नही ,फिर भी मुझको जलना है।
दोनों की ख़्वाहिश यही,दानी से बस मिलना है।
रविवार, 4 जुलाई 2010
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मैं पतंगा तो नही ,फिर भी मुझको जलना है।
जवाब देंहटाएंदोनों की ख़्वाहिश यही,दानी से बस मिलना है।
सुन्दर जज्बात
"
regards
अच्छी रचना ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सीमा गुप्ता व अजय कुमार जी, साइट पे विसिट व हौसला अफ़्ज़ाई के लिये।
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