अब बेवफ़ाई, इश्क़ का दस्तूर है , राहे-मुहब्बत दर्द से भरपूर है।
बारिश का मौसम रुख़ पे आया इस तरह,ज़ुल्फ़ों का तेरा दरिया भी मग़रूर है।
ग़म के चमन को रोज़ सजदे करता हूं ,पतझड़ के व्होठों में मेरा ही नूर है।
इस झोपड़ी की यादों में इक ख़ुशबू है ,महलों के रिश्ते भी सनम नासूर हैं।
दिल के समन्दर में वफ़ा की कश्ती है , आंख़ों के साग़र को हवस मन्जूर है।
जब से नदी के पास ये दिल बैठा है , मेरी रगों की प्यास मुझसे दूर है।
चालें सियासत की, तेरे वादों सी , जनता उलझने को सदा मजबूर है।
ग़म के चराग़ो को जला कर बैठा हूं , अब आंधियों का हुस्न बे-नूर है।
दिल राम को तरज़ीह देता है मगर , मन रावणी क्रित्यों में मख़मूर है।
गुरुवार, 1 जुलाई 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
दिल राम को तरज़ीह देता है मगर , मन रावणी क्रित्यों में मख़मूर है। क्या खूब कहा है
जवाब देंहटाएंबारिश का मौसम रुख़ पे आया इस तरह,ज़ुल्फ़ों का तेरा दरिया भी मग़रूर है।
जवाब देंहटाएंwah bhai bahut khoob likha hai
badhai
अब आंधियों का हुस्न बे-नूर है
जवाब देंहटाएंवाह! मज़ा आ गया डॉक़टर साहब आप के कलाम में !
वाह-वाह!
वाईस आफ़ पिपुल,रत्नाकर जी,हिमान्शु मोहन जी, अजय कुमार जी,व इ-गुरू राजीव को बहुत बहुत धन्यवाद मेरे ब्लाग में विसिट करने हेतू और इस नाचीज़ की हौसला अफ़्जाई के लिये। कुछ नकरात्मक बात, मेरी किसी रचना में आपको महसूस हो तो बेधड़क मुझे guide करे आख़िर मैं भी आपके बिरादरी की इक नयी कलम हूं
जवाब देंहटाएंइस चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संगीता पुरी जी आप जैसे लोगों की टिप्पणियां मिलती रहेगीं तो शायद मैं अपने लय को बनाये रख पाऊंगा।
जवाब देंहटाएंस्वागतम
जवाब देंहटाएं