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रफ़्तार
चिट्ठाजगत

गुरुवार, 1 जुलाई 2010

बे-वफ़ाई

अब बेवफ़ाई, इश्क़ का दस्तूर है , राहे-मुहब्बत दर्द से भरपूर है।
बारिश का मौसम रुख़ पे आया इस तरह,ज़ुल्फ़ों का तेरा दरिया भी मग़रूर है।
ग़म के चमन को रोज़ सजदे करता हूं ,पतझड़ के व्होठों में मेरा ही नूर है।
इस झोपड़ी की यादों में इक ख़ुशबू है ,महलों के रिश्ते भी सनम नासूर हैं।
दिल के समन्दर में वफ़ा की कश्ती है , आंख़ों के साग़र को हवस मन्जूर है।
जब से नदी के पास ये दिल बैठा है , मेरी रगों की प्यास मुझसे दूर है।
चालें सियासत की, तेरे वादों सी , जनता उलझने को सदा मजबूर है।
ग़म के चराग़ो को जला कर बैठा हूं , अब आंधियों का हुस्न बे-नूर है।
दिल राम को तरज़ीह देता है मगर , मन रावणी क्रित्यों में मख़मूर है।

7 टिप्‍पणियां:

  1. दिल राम को तरज़ीह देता है मगर , मन रावणी क्रित्यों में मख़मूर है। क्या खूब कहा है

    जवाब देंहटाएं
  2. बारिश का मौसम रुख़ पे आया इस तरह,ज़ुल्फ़ों का तेरा दरिया भी मग़रूर है।

    wah bhai bahut khoob likha hai
    badhai

    जवाब देंहटाएं
  3. अब आंधियों का हुस्न बे-नूर है
    वाह! मज़ा आ गया डॉक़टर साहब आप के कलाम में !
    वाह-वाह!

    जवाब देंहटाएं
  4. वाईस आफ़ पिपुल,रत्नाकर जी,हिमान्शु मोहन जी, अजय कुमार जी,व इ-गुरू राजीव को बहुत बहुत धन्यवाद मेरे ब्लाग में विसिट करने हेतू और इस नाचीज़ की हौसला अफ़्जाई के लिये। कुछ नकरात्मक बात, मेरी किसी रचना में आपको महसूस हो तो बेधड़क मुझे guide करे आख़िर मैं भी आपके बिरादरी की इक नयी कलम हूं

    जवाब देंहटाएं
  5. इस चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

    जवाब देंहटाएं
  6. धन्यवाद संगीता पुरी जी आप जैसे लोगों की टिप्पणियां मिलती रहेगीं तो शायद मैं अपने लय को बनाये रख पाऊंगा।

    जवाब देंहटाएं